'I LOVE YOU कहने के लिए 'I' कहना आना चाहिए: आयन रैंड
रूसी अमेरिकी लेखिका आयन रैंड का उपन्यास है, ‘फाउंटेन हेड / fountainhead ’ और उसमें एक छात्र है- होवार्ड रोअर्क. इस उपन्यास कि कहानी कि शुरुआत ही यहां से होती है कि उसे यूनिवर्सिटी से निकाला जा रहा है. वो आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहा है और कुछ ऐसे डिजाइन हैं जो उसके शिक्षक को पसंद नहीं आते, वो बिल्कुल अलग किस्म के डिजाइन बनाता है. कॉलेज का डीन होवार्ड रोअर्क से कहता है, तुमने ये जो डिजाइन बनाये हैं, तो कौन तुम्हें अनुमति देगा ऐसी बिल्डिंग तैयार करने की? डीन कहता है कि तुम जो ये बना कर ले आये हो, ये इतना नया है कि तुम्हें कौन अनुमति देगा ऐसी बिल्डिंग बनाने की? रोअर्क कहता है कि सवाल ये नहीं है कि मुझे कौन बनाने देगा, सवाल ये है कि मुझे कौन रोकेगा.
ऊपर के पैराग्राफ की ये लाइनें रूसी-अमेरिकी उपन्यासकार, दार्शनिक, नाटककार आयन रैंड के कालजयी उपन्यास ‘द फाउंटेनहेड’ से हैं. रैंड ने 1943 में अपना यह मशहूर नॉवेल लिखकर ऑब्जेक्टिविज्म के सिद्धांत को स्थापित किया.
आयन रैंड का जन्म 2 फरवरी 1905 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था. छह वर्ष की उम्र में खुद ही पढ़ना सीख लेने के दो साल बाद उन्हें बच्चों की एक फ्रांसीसी मैगजीन में अपना पहला काल्पनिक हीरो मिल गया. हीरो की एक ऐसी छवि जो ताउम्र उनके दिलो-दिमाग पर चस्पां रही. नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने कल्पना आधारित लेखन को ही अपना करियर बनाने का फैसला कर लिया. रूसी संस्कृति के रहस्यवाद और समूहवाद की मुखर विरोधी आयन खुद को यूरोपियन लेखकों की तरह मानती थीं, खासतौर पर अपने सबसे पसंदीदा लेखक विक्टर ह्यूगो से सामना होने के बाद.
हाईस्कूल के अंतिम साल में जब उन्होंने अमेरिकी इतिहास पढ़ा, तो उन्होंने आजाद मुल्क की कल्पना के लिए अमेरिका को ही अपना आदर्श स्वीकार लिया. जब उनका परिवार क्रीमिया से लौटा, तो उन्होंने दर्शनशास्त्र और इतिहास की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोग्राड में दाखिला ले लिया. 1924 में स्नातक होने के बाद उन्होंने हर बात को जानने की आजादी को खत्म होते देखा और यह भी कि धीरे-धीरे यूनिवर्सिटी पर कम्युनिस्ट ठगों का राज हो गया. निराशा के इन दिनों में उन्हें वियना के ऑपेरा और पश्चिम की फिल्में या नाटकों से ही सुकून मिलता था.
1925 के अंतिम दिनों में उन्होंने रिश्तेदारों से मिलने के लिए सोवियत संघ छोड़कर अमेरिका जाने की अनुमति मांगी. उन्होंने हालांकि सोवियत अधिकारियों को यही बताया कि उनका यह प्रवास छोटा होगा, वास्तविकता यह थी वे रूस वापस न लौटने का पक्का निश्चय कर चुकी थीं. फरवरी, 1926 में वे न्यूयॉर्क पहुंचीं. शिकागो में रिश्तेदारों के साथ छह माह गुजारने के बाद उन्होंने वीजा की अवधि बढ़वा ली और फिर स्क्रीन राइटिंग में करियर बनाने के लिए हॉलीवुड के लिए रवाना हो गईं.
हॉलीवुड में आयन रैंड को दूसरे ही दिन सेसिल बी. डीमिल ने स्टूडियो के दरवाजे पर खड़ा देख लिया. उन्होंने आयन को अपनी फिल्म ‘द किंग ऑफ किंग्स’ तक लिफ्ट दी और फिर उन्हें पहले एक एक्स्ट्रा और फिर एक स्क्रिप्ट रीडर का काम दे दिया. स्टूडियो में अगले एक सप्ताह में आयन की मुलाकात अभिनेता फ्रैंक ओ' कॉनर से हुई जिनसे उन्होंने 1929 में शादी की. उनका वैवाहिक बंधन 50 साल बाद ओ' कॉनर की मौत तक कायम रहा.
आयन ने 1932 में यूनिवर्सल स्टूडियो को अपना पहला स्क्रीनप्ले 'रेड पॉन' बेचा और 16 जनवरी की रात अपने पहले नाटक को स्टेज पर देखा. इसे पहले हॉलीवुड में तैयार किया गया और फिर ब्रॉडवे में. उनका पहला नॉवेल, ‘वी द लिविंग’, तैयार तो 1934 में ही हो गया था, लेकिन कई पब्लिशरों के इनकार के बाद इसे 1936 में अमेरिका में ‘द मैकमिलन’ कंपनी और इंग्लैंड में ‘केसेल्स एंड कंपनी’ ने प्रकाशित किया. उनकी जिंदगी पर सबसे ज्यादा प्रकाश डालने वाला यह उपन्यास निरंकुश सोवियत शासन के तहत गुजारे गए उनके दिनों पर आधारित था.
1937 में समूहवाद विरोधी लघु उपन्यास 'एंथम' लिखने के लिए छोटा सा ब्रेक लेने के बाद उन्होंने 1935 में ‘द फाउंटनहेड’ लिखना शुरू किया. वास्तुविद हॉवर्ड रोआर्क के कैरेक्टर में उन्होंने अपने लेखन में उस तरह के हीरो को प्रस्तुत किया जिसका बखान ही उनके लेखन का मूल लक्ष्य था. एक आदर्श व्यक्ति, ऐसा व्यक्ति जैसा 'वह हो सकता है और होना चाहिए.' 12 पब्लिशरों के इनकार के बाद आखिरकार बॉब्समेरिल कंपनी ने ‘द फाउंटेनहेड’ के प्रकाशन का जिम्मा स्वीकारा. 1943 में प्रकाशित होने के बाद मौखिक प्रचार ने ही दो साल के भीतर इसे बेस्ट सेलर बना दिया. साथ ही यह आयन को व्यक्तिवाद के हिमायती के तौर पर पहचान दिला दी.आयन रैंड ने 1943 में हॉलीवुड में वापसी के बाद ‘द फाउंटेनहेड’ का स्क्रीनप्ले लिखा. युद्ध के कारण लगे प्रतिबंधों के चलते यह 1948 में ही तैयार किया जा सका. हाल वालिस प्रोडक्शंस के लिए पार्ट-टाइम स्क्रीन राइटर के तौर पर काम करते हुए उन्होंने 1946 में अपने मुख्य उपन्यास 'एटलस श्रग्ड' का लेखन आरंभ किया. 1951 में न्यूयॉर्क लौटकर उन्होंने अपना पूरा वक्त ही इस उपन्यास को पूरा करने में दे डाला.
1957 में प्रकाशित 'एटलस श्रग्ड' उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही और यह उनका अंतिम काल्पनिक उपन्यास भी रहा. इस उपन्यास में उन्होंने अपने सबसे अलग फलसफे (फिलॉसफी) को एक ऐसी दिमागी रहस्यमयी कहानी में बदल डाला जिसमें नीतिशास्त्र (एथिक्स), तत्व-मीमांसा (मेटाफिजिक्स), ज्ञान मीमांसा (एपिस्टेमॉलॉजी), राजनीति, अर्थशास्त्र और सेक्स सब-कुछ था. खुद को मूलतः काल्पनिक लेखन करने वाली मानने के बाद भी उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि आदर्श काल्पनिक पात्रों की रचना के लिए उन्हें ऐसे दार्शनिक सिद्धांत पहचानने होंगे, जिनसे ऐसे लोग संभव हो सकें.
इसके बाद, आयन रैंड ने अपने दर्शन, ध्येयवाद (ऑब्जेक्टिविज्म), पर लेखन और लेक्चर का काम किया, जो 'ए फिलॉसॉफी फॉर लिविंग ऑन अर्थ' में देखा जा सकता है. 1962 से 1976 के दौरान उन्होंने अपनी ही पत्रिकाओं (पीरियॉडिकल्स) का संपादन और प्रकाशन किया. उनकी ध्येयवाद पर छह किताबों की सामग्री यहीं से जुटाई गई और संस्कृति में इस्तेमाल के लिए भी इसका प्रयोग किया गया. आयन रैंड का 6 मार्च 1982 को न्यूयॉर्क शहर में उनके अपार्टमेंट में निधन हो गया.
अपनी जिंदगी के दौरान आयन रैंड ने जो किताबें प्रकाशित कीं वे आज भी प्रकाशित की जाती हैं. हर साल इनकी हजारों प्रतियां बिकती हैं. अब तक उनकी किताबों की कुल 2.5 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं. उनकी मौत के बाद उनके लेखन के कुछ और खंड भी प्रकाशित किए गए हैं. इंसान को लेकर उनके दृष्टिकोण और इस धरती पर जीवित रहने के उनके फलसफे ने हजारों पाठकों की जिंदगी ही बदल डाली. साथ ही उसने अमेरिकी संस्कृति में एक नए दार्शनिक आंदोलन को भी जन्म दे दिया.
पेश हैं आयन रैंड के सुविचार कथन
1. दर्द या खतरा या दुश्मन के बारे में एक पल से ज्यादा मत सोचो, जब तक उनसे लड़ना जरुरी ना हो.
2. 'अपने आपको मूर्ख मत बनाओ, प्रिये. तुम एक चुड़ैल से भी ज्यादा डरावने हो. तुम एक संत हो. जो दर्शाता है कि क्यों संत खतरनाक और अनचाहा होता है.'
3. एक व्यक्ति जो खुद को नहीं पहचान पाता, किसी दूसरी चीज या व्यक्ति को नहीं पहचान सकता.
4. 'मैं तुम्हारे लिए मर सकती हूं लेकिन मैं तुम्हारे लिए नहीं मरूंगी और ना मैं तुम्हारे लिए जीऊंगी.'
5. स्वतंत्रताः कुछ भी ना कहने/पूछने के लिए. किसी चीज की उम्मीद ना करना, ना किसी पर निर्भर रहना.
6. ' I Love You ' कहने के लिए यह जानना जरुरी है कि 'I' कैसे कहा जाए.'
7. धरती पर सबसे छोटा अल्पसंख्यक एक व्यक्ति है और एक व्यक्ति के अधिकारों को खारिज करने वाला कभी अल्पसंख्यकों का रक्षक नहीं हो सकता.